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शेर
मय-ख़ाने में क्यूँ याद-ए-ख़ुदा होती है अक्सर
मस्जिद में तो ज़िक्र-ए-मय-ओ-मीना नहीं होता
रियाज़ ख़ैराबादी
शेर
तिरे सुख़न में ऐ नासेह नहीं है कैफ़िय्यत
ज़बान-ए-क़ुलक़ुल-ए-मीना सीं सुन कलाम-ए-शराब
सिराज औरंगाबादी
शेर
'अदम' रोज़-ए-अजल जब क़िस्मतें तक़्सीम होती थीं
मुक़द्दर की जगह मैं साग़र-ओ-मीना उठा लाया
अब्दुल हमीद अदम
शेर
हट न कर ऐ दुख़्त-ए-रज़ बेताबियाँ बढ़ जाएँगी
गिर पड़ेगी पाँव पर दस्तार-ए-मीना देखना
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
शेर
हमारे पास कोई गर्दिश-ए-दौराँ नहीं आती
हम अपनी उम्र-ए-फ़ानी साग़र-ओ-मीना में रखते हैं
ज़हीर काश्मीरी
शेर
बहार आते ही टकराने लगे क्यूँ साग़र ओ मीना
बता ऐ पीर-ए-मय-ख़ाना ये मय-ख़ानों पे क्या गुज़री
जगन्नाथ आज़ाद
शेर
जलवा-ए-रुख़सार-ए-साक़ी साग़र-ओ-मीना में है
चाँद ऊपर है मगर डूबा हुआ दरिया में है
मुज़्तर ख़ैराबादी
शेर
क़ुलक़ुल-ए-मीना सदा नाक़ूस की शोर-ए-अज़ाँ
ठंडे ठंडे दीदनी है गर्मी-ए-बाज़ार-ए-सुब्ह