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शेर
शब-ए-इंतिज़ार की कश्मकश में न पूछ कैसे सहर हुई
कभी इक चराग़ जला दिया कभी इक चराग़ बुझा दिया
मजरूह सुल्तानपुरी
शेर
तुझे किस बात का ग़म है वो इतना पूछ लें मुझ से
वो इतना पूछ लें मुझ से तो फिर किस बात का ग़म है
मुशताक़ हुसैन ख़ान हाशमी मुश्ताक़
शेर
भोले बन कर हाल न पूछ बहते हैं अश्क तो बहने दो
जिस से बढ़े बेचैनी दिल की ऐसी तसल्ली रहने दो
आरज़ू लखनवी
शेर
शाम-ए-फ़िराक़ अब न पूछ आई और आ के टल गई
दिल था कि फिर बहल गया जाँ थी कि फिर सँभल गई