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शेर
मिरी क़िस्मत लिखी जाती थी जिस दिन मैं अगर होता
उड़ा ही लेता दस्त-ए-कातिब-ए-तक़दीर से काग़ज़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
शेर
ख़ालिद हसन क़ादिरी
शेर
नहीं है दिल का सुकूँ क़िस्मत-ए-तमन्ना में
तुम्हें भी दिल की तमन्ना बना के देख लिया
मयकश अकबराबादी
शेर
इश्क़ जब दख़्ल करे है दिल-ए-इंसाँ में 'मुहिब'
वाहिमे सब बशरिय्यत के करे है इख़राज
वलीउल्लाह मुहिब
शेर
क्या हँसी आती है मुझ को हज़रत-ए-इंसान पर
फ़े'ल-ए-बद ख़ुद ही करें ला'नत करें शैतान पर