aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "rah-rav-e-raah"
मिले जो वक़्त तो ऐ रह-रव-ए-रह-ए-इक्सीरहक़ीर ख़ाक से भी साज़-बाज़ करता जा
हम वो रह-रव हैं कि चलना ही है मस्लक जिन काहम तो ठुकरा दें अगर राह में मंज़िल आए
चालीस जाम पी के दिया एक जाम-ए-मयसाक़ी ने ख़ूब राह निकाली ज़कात की
यूँ सर-ए-राह मुलाक़ात हुई है अक्सरउस ने देखा भी नहीं हम ने पुकारा भी नहीं
दिल में आ राह-ए-चश्म-ए-हैराँ सींखुल रहे हैं मिरी पलक के पाट
वामाँदगान-ए-राह तो मंज़िल पे जा पड़ेअब तू भी ऐ 'नज़ीर' यहाँ से क़दम तराश
शैख़ साहब से रस्म-ओ-राह न कीशुक्र है ज़िंदगी तबाह न की
ज़माना अक़्ल को समझा हुआ है मिशअल-ए-राहकिसे ख़बर कि जुनूँ भी है साहिब-ए-इदराक
राह में बैठा हूँ मैं तुम संग-ए-रह समझो मुझेआदमी बन जाऊँगा कुछ ठोकरें खाने के बाद
अबस इल्ज़ाम मत दो मुश्किलात-ए-राह को 'राही'तुम्हारे ही इरादे में कमी मालूम होती है
ज़िंदगी टूट के बिखरी है सर-ए-राह अभीहादिसा कहिए इसे या कि तमाशा कहिए
सख़्ती-ए-राह खींचिए मंज़िल के शौक़ मेंआराम की तलाश में ईज़ा उठाइए
संग-ए-रह हूँ एक ठोकर के लिएतिस पे वो दामन सँभाल आता है आज
मस्जिद की सर-ए-राह बिना डाल न ज़ाहिदइस रोक से होने के नहीं कू-ए-बुताँ बंद
तुम जानो तुम को ग़ैर से जो रस्म-ओ-राह होमुझ को भी पूछते रहो तो क्या गुनाह हो
दिल धड़कता है सर-ए-राह-ए-ख़यालअब ये आवाज़ जहाँ तक पहुँचे
मैं संग-ए-रह नहीं जो उठा कर तू फेंक देमैं ऐसा मरहला हूँ जो सौ बार आएगा
खड़ा हुआ हूँ सर-ए-राह मुंतज़िर कब सेकि कोई गुज़रे तो ग़म का ये बोझ उठवा दे
मैं संग-ए-रह हूँ तो ठोकर की ज़द पे आऊँगातुम आईना हो तो फिर टूटना ज़रूरी है
ग़ुबार-ए-राह चला साथ ये भी क्या कम हैसफ़र में और कोई हम-सफ़र मिले न मिले
Devoted to the preservation & promotion of Urdu
A Trilingual Treasure of Urdu Words
Online Treasure of Sufi and Sant Poetry
World of Hindi language and literature
The best way to learn Urdu online
Best of Urdu & Hindi Books