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शेर
कूचा-ए-हुस्न छुटा तो हुए रुस्वा-ए-शराब
अपनी क़िस्मत में जो लिक्खी थी वो ख़्वारी न गई
अख़्तर शीरानी
शेर
हँस के कहता है मुसव्विर से वो ग़ारत-गर-ए-होश
जैसी सूरत है मिरी वैसी ही तस्वीर भी हो