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शेर
मिरी ख़ाक उस ने बिखेर दी सर-ए-रह ग़ुबार बना दिया
मैं जब आ सका न शुमार में मुझे बे-शुमार बना दिया
इक़बाल कौसर
शेर
सर-ए-राह मिल के बिछड़ गए था बस एक पल का वो हादसा
मिरे सेहन-ए-दिल में मुक़ीम है वही एक लम्हा अज़ाब का
अंजुम इरफ़ानी
शेर
खावेंगे टाँके ज़ख़्म-ए-सर-ओ-रू पर ऐ तबीब
पर ज़ख़्म-ए-दिल तो हम से सिलाया न जाएगा