aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "sarvat husain"
जिसे अंजाम तुम समझती होइब्तिदा है किसी कहानी की
बुझी रूह की प्यास लेकिन सख़ीमिरे साथ मेरा बदन भी तो है
भर जाएँगे जब ज़ख़्म तो आऊँगा दोबारामैं हार गया जंग मगर दिल नहीं हारा
दश्त छोड़ा तो क्या मिला 'सरवत'घर बदलने के ब'अद क्या होगा
मिलना और बिछड़ जाना किसी रस्ते परइक यही क़िस्सा आदमियों के साथ रहा
तेरी आशुफ़्ता-मिज़ाजी ऐ दिलक्या ख़बर कौन नगर ले जाए
सूरमा जिस के किनारों से पलट आते हैंमैं ने कश्ती को उतारा है उसी पानी में
सोचता हूँ कि उस से बच निकलूँबच निकलने के ब'अद क्या होगा
साया-ए-अब्र से पूछो 'सरवत'अपने हमराह अगर ले जाए
मिट्टी पे नुमूदार हैं पानी के ज़ख़ीरेइन में कोई औरत से ज़ियादा नहीं गहरा
मैं किताब-ए-ख़ाक खोलूँ तो खुलेक्या नहीं मौजूद क्या मौजूद है
'सरवत' तुम अपने लोगों से यूँ मिलते होजैसे उन लोगों से मिलना फिर नहीं होगा
मैं अपनी प्यास के हमराह मश्कीज़ा उठाएकि इन सैराब लोगों में कोई प्यासा मिलेगा
आँखें हैं और धूल भरा सन्नाटा हैगुज़र गई है अजब सवारी यादों वाली
मैं आग देखता था आग से जुदा कर केबला का रंग था रंगीनी-ए-क़बा से उधर
वो इक सूरज सुब्ह तलक मिरे पहलू मेंअपनी सब नाराज़गियों के साथ रहा
अपने लिए तज्वीज़ की शमशीर-ए-बरहनाऔर उस के लिए शाख़ से इक फूल उतारा
ख़ुश-लिबासी है बड़ी चीज़ मगर क्या कीजेकाम इस पल है तिरे जिस्म की उर्यानी से
ले आएगा इक रोज़ गुल ओ बर्ग भी 'सरवत'बाराँ का मुसलसल ख़स-ओ-ख़ाशाक पे होना
उसे भी याद रखना बादबानी साअतों मेंवो सय्यारा कनार-ए-सुब्ह-ए-फ़र्दा आ मिलेगा
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