aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "sazaa"
ये जब्र भी देखा है तारीख़ की नज़रों नेलम्हों ने ख़ता की थी सदियों ने सज़ा पाई
अंजाम-ए-वफ़ा ये है जिस ने भी मोहब्बत कीमरने की दुआ माँगी जीने की सज़ा पाई
मेरी बाँहों में बहकने की सज़ा भी सुन लेअब बहुत देर में आज़ाद करूँगा तुझ को
जुर्म में हम कमी करें भी तो क्यूँतुम सज़ा भी तो कम नहीं करते
मिरा ज़मीर बहुत है मुझे सज़ा के लिएतू दोस्त है तो नसीहत न कर ख़ुदा के लिए
मोहब्बत की सज़ा तर्क-ए-मोहब्बतमोहब्बत का यही इनआम भी है
भरी बज़्म में राज़ की बात कह दीबड़ा बे-अदब हूँ सज़ा चाहता हूँ
ये तो कहिए इस ख़ता की क्या सज़ामैं जो कह दूँ आप पर मरता हूँ मैं
या तो जो ना-फ़हम हैं वो बोलते हैं इन दिनोंया जिन्हें ख़ामोश रहने की सज़ा मालूम है
तबस्सुम की सज़ा कितनी कड़ी हैगुलों को खिल के मुरझाना पड़ा है
इक़रार है कि दिल से तुम्हें चाहते हैं हमकुछ इस गुनाह की भी सज़ा है तुम्हारे पास
दोस्तों से मुलाक़ात की शाम हैये सज़ा काट कर अपने घर जाऊँगा
मुझ को मिरी शिकस्त की दोहरी सज़ा मिलीतुझ से बिछड़ के ज़िंदगी दुनिया से जा मिली
मुझ से क्या हो सका वफ़ा के सिवामुझ को मिलता भी क्या सज़ा के सिवा
कुछ तो इस दिल को सज़ा दी जाएउस की तस्वीर हटा दी जाए
ज़िंदगी जब्र-ए-मुसलसल की तरह काटी हैजाने किस जुर्म की पाई है सज़ा याद नहीं
ज़िंदगी से बड़ी सज़ा ही नहींऔर क्या जुर्म है पता ही नहीं
बुलाऊँगा न मिलूँगा न ख़त लिखूँगा तुझेतिरी ख़ुशी के लिए ख़ुद को ये सज़ा दूँगा
ग़ौर से देखते रहने की सज़ा पाई हैतेरी तस्वीर इन आँखों में उतर आई है
सौ जान से हो जाऊँगा राज़ी मैं सज़ा परपहले वो मुझे अपना गुनहगार तो कर ले
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