aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "shahpar"
मुझे भी लम्हा-ए-हिजरत ने कर दिया तक़्सीमनिगाह घर की तरफ़ है क़दम सफ़र की तरफ़
मैं ने भी देखने की हद कर दीवो भी तस्वीर से निकल आया
कोई साया न कोई हम-सायाआब-ओ-दाना ये किस जगह लाया
दूसरों के ज़ख़्म बुन कर ओढ़ना आसाँ नहींसब क़बाएँ हेच हैं मेरी रिदा के सामने
ग़ैब का ऐसा परिंदा है ज़मीं पर इंसाँआसमानों को जो शह-पर पे उठाए हुए है
रेख़्ता का इक नया मज्ज़ूब है 'शहपर' रसूलशोहरत उस के नाम पर इक नंग है बोहतान है
खींच देता मैं ज़माने पे मोहब्बत के नुक़ूशमेरे क़ब्ज़े में अगर ख़ामा-ए-शहपर होता
धुंद है और सुरमई कोहसार की चोटी है 'ज़ेब'ज़र्द शहपर धूप उड़ने के लिए तय्यार है
अब तक तो अपने आप से पीछा न छुट सकामुमकिन है कल से आप के हक़ में दुआ करूँ
'शहपर' मिरी हदों का तअय्युन करे कोईआँखों से बह रहूँ कि रगों में फिरा करूँ
आसमाँ-दर-आसमाँ असरार मुझ पर खुल गएमैं उड़ाया जा रहा हूँ शहपर-ए-जिबरील से
शदीद प्यास थी फिर भी छुआ न पानी कोमैं देखता रहा दरिया तिरी रवानी को
जहाँ में होने को ऐ दोस्त यूँ तो सब होगातिरे लबों पे मिरे लब हों ऐसा कब होगा
जुस्तुजू जिस की थी उस को तो न पाया हम नेइस बहाने से मगर देख ली दुनिया हम ने
सियाह रात नहीं लेती नाम ढलने कायही तो वक़्त है सूरज तिरे निकलने का
चले तो पाँव के नीचे कुचल गई कोई शयनशे की झोंक में देखा नहीं कि दुनिया है
जिस भी फ़नकार का शहकार हो तुमउस ने सदियों तुम्हें सोचा होगा
तू इधर उधर की न बात कर ये बता कि क़ाफ़िले क्यूँ लुटेतिरी रहबरी का सवाल है हमें राहज़न से ग़रज़ नहीं
इतनी पी जाए कि मिट जाए मैं और तू की तमीज़यानी ये होश की दीवार गिरा दी जाए
शिकवा कोई दरिया की रवानी से नहीं हैरिश्ता ही मिरी प्यास का पानी से नहीं है
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