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शेर
मैं शु'आ-ए-ज़ात के सीने में गूँजा हूँ कभी
और 'करामत' मैं कभी लम्हों के ख़्वाबों में रहा
करामत अली करामत
शेर
सीरत के हम ग़ुलाम हैं सूरत हुई तो क्या
सुर्ख़ ओ सफ़ेद मिट्टी की मूरत हुई तो क्या
बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान
शेर
शब-ए-हिज्राँ क्या सियाही न हुई रोज़-ए-सफ़ेद
ये वरक़ तू ने न ऐ गर्दिश-ए-अय्याम उल्टा
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
पीरी में 'रियाज़' अब भी जवानी के मज़े हैं
ये रीश-ए-सफ़ेद और मय-ए-होश-रुबा सुर्ख़