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शेर
जिस कू में हो गुज़ार-ए-परी-तलअतान-हिन्द
वो कूचा क्यूँके रू-कश-ए-चीन-ओ-चगिल न हो
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
सर-ज़मीन-ए-हिंद पर अक़्वाम-ए-आलम के 'फ़िराक़'
क़ाफ़िले बसते गए हिन्दोस्ताँ बनता गया
फ़िराक़ गोरखपुरी
शेर
हम बहुत देखे फ़रंगिस्तान के हुस्न-ए-सबीह
चर्ब है सब पर बुतान-ए-हिन्द का रंग-ए-मलीह
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
शेर
शोर रखते हैं जहाँ में जिस क़दर सब्ज़ान-ए-हिंद
बे-नमक है उन के आगे हुस्न और अतराफ़ का
वलीउल्लाह मुहिब
शेर
तेरी ख़ातिर जो हुई उस हर शहादत को सलाम
सरज़मीन-ए-हिन्द तेरी शान-ओ-शौकत को सलाम
फ़ैसल क़ादरी गुन्नौरी
शेर
मालूम अब हुआ है आ हिन्द बीच हम कूँ
लगते हैं दिल-बराँ के लब रंग-ए-पाँ से क्या ख़ूब