aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "taa.ir-e-shaakh-e-nasheman"
न नशेमन है न है शाख़-ए-नशेमन बाक़ीलुत्फ़ जब है कि करे अब कोई बर्बाद मुझे
मैं अध-मरा गुलाब सर-ए-शाख़-ए-नीम-जाँहाथों से तू ने मुझ को सँवारा तो मैं गया
इस गुलिस्ताँ की यही रीत है ऐ शाख़-ए-गुलतू ने जिस फूल को पाला वो पराया होगा
आज भी ज़ख़्म ही खिलते हैं सर-ए-शाख़-ए-निहालनख़्ल-ए-ख़्वाहिश पे वही बे-समरी रहना थी
ताइर-ए-ख़स्ता-बाल को दाम भी कुंज-ए-आशियाँमुर्ग़-ए-चमन-नवर्द को गोशा-ए-आशियाँ भी दाम
ऐ ताइर-ए-लाहूती उस रिज़्क़ से मौत अच्छीजिस रिज़्क़ से आती हो परवाज़ में कोताही
ये किस की याद की बारिश में भीगता है बदनये कैसा फूल सर-ए-शाख़-ए-जाँ खिला हुआ है
हर ख़्वाब शिकस्ता है तामीर-ए-नशेमन काहर सुब्ह के माथे पर बाज़ार की गर्मी है
बता नसीब-ए-नशेमन मैं क्या दुआ माँगूँजो आसमाँ की तरफ़ रौशनी नज़र आए
कहीं भी ताइर-ए-आवारा हो मगर तय हैजिधर कमाँ है उधर जाएगा कभी न कभी
ताइर-ए-अक़्ल को मा'ज़ूर कहा ज़ाहिद नेपर-ए-पर्वाज़ में तस्बीह का डोरा बाँधा
हो हरी शाख़-ए-तमन्ना या न होसींच देना चश्म-ए-तर का काम है
शाख़-ए-मिज़्गाँ पे महकने लगे ज़ख़्मों के गुलाबपिछले मौसम की मुलाक़ात की बू ज़िंदा है
वो ख़ार ख़ार है शाख़-ए-गुलाब की मानिंदमैं ज़ख़्म ज़ख़्म हूँ फिर भी गले लगाऊँ उसे
शाख़-ए-उरियाँ पर खिला इक फूल इस अंदाज़ सेजिस तरह ताज़ा लहू चमके नई तलवार पर
शाख़-ए-गुल झूम के गुलज़ार में सीधी जो हुईफिर गया आँख में नक़्शा तिरी अंगड़ाई का
कमान-ए-शाख़ से गुल किस हदफ़ को जाते हैंनशेब-ए-ख़ाक में जा कर मुझे ख़याल आया
वो शाख़-ए-गुल पे रहें या किसी की मय्यत परचमन के फूल तो आदी हैं मुस्कुराने के
लेते हैं समर शाख़-ए-समरवर को झुका करझुकते हैं सख़ी वक़्त-ए-करम और ज़ियादा
हर शाख़-ए-चमन है अफ़्सुर्दा हर फूल का चेहरा पज़मुर्दाआग़ाज़ ही जब ऐसा है तो फिर अंजाम-ए-बहाराँ क्या होगा
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