aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "tahriik"
शेर तो मुझ से तेरी आँखें कहला लेती हैंचुप रहता हूँ मैं जब तक तहरीक नहीं होती
वो बात क्या जो और की तहरीक से हुईवो काम क्या जो ग़ैर की इमदाद से हुआ
जब ग़ुंचे को वाशुद हुई तहरीक सबा सेबुलबुल से अजब क्या जो करे नग़्मा-सराई
यूँ तिरी चाप से तहरीक-ए-सफ़र टूटती हैजैसे पलकों के झपकने से नज़र टूटती है
शहर-दर-शहर ये ख़ाक-ओ-ख़ूँ की फ़ज़ा सोची-समझी हुई एक तहरीक हैऊँचे महलों में बैठे रहे अहल-ए-ज़र मुफ़लिसों के मकानात जलते रहे
जिन के किरदार से आती हो सदाक़त की महकउन की तदरीस से पत्थर भी पिघल सकते हैं
तहरीर से वर्ना मिरी क्या हो नहीं सकताइक तू है जो लफ़्ज़ों में अदा हो नहीं सकता
देखा नहीं वो चाँद सा चेहरा कई दिन सेतारीक नज़र आती है दुनिया कई दिन से
वरक़ वरक़ तुझे तहरीर करता रहता हूँमैं ज़िंदगी तिरी तशहीर करता रहता हूँ
ज़मीन इतनी नहीं है कि पाँव रख पाएँदिल-ए-ख़राब की ज़िद है कि घर बनाया जाए
आँख रखते हो तो उस आँख की तहरीर पढ़ोमुँह से इक़रार न करना तो है आदत उस की
कौन तहलील हुआ है मुझ मेंमुंतशिर क्यूँ हैं अनासिर मेरे
अभी बाक़ी है बिछड़ना उस सेना-मुकम्मल ये कहानी है अभी
उम्र भर लिखते रहे फिर भी वरक़ सादा रहाजाने क्या लफ़्ज़ थे जो हम से न तहरीर हुए
कोई शिकवा न शिकायत न वज़ाहत कोईमेज़ से बस मिरी तस्वीर हटा दी उस ने
तफ़रीक़ हुस्न-ओ-इश्क़ के अंदाज़ में न होलफ़्ज़ों में फ़र्क़ हो मगर आवाज़ में न हो
हुस्न और इश्क़ दोनों में तफ़रीक़ है पर इन्हीं दोनों पे मेरा ईमान हैगर ख़ुदा रूठ जाए तो सज्दे करूँ और सनम रूठ जाए तो मैं क्या करूँ
एक किरन बस रौशनियों में शरीक नहीं होतीदिल के बुझने से दुनिया तारीक नहीं होती
हर सोच में संगीन फ़ज़ाओं का फ़सानाहर फ़िक्र में शामिल हुआ तहरीर का मातम
हम भी कहने लगे हैं रात को रातहम भी गोया ख़राब होने लगे
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