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शेर
वो कुछ रूठी हुई आवाज़ में तज्दीद-ए-दिल-दारी
नहीं भूला तिरा वो इल्तिफ़ात-ए-सर-गिराँ अब तक
फ़िराक़ गोरखपुरी
शेर
बाँधा था ख़ुद ही आप ने पैग़ाम-ए-इल्तिफ़ात
क्या बात थी जो आप ही ख़ुद बद-गुमाँ हुए