aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "takhtii"
लिखा था एक तख़्ती पर कोई भी फूल मत तोड़े मगर आँधी तो अन-पढ़ थीसो जब वो बाग़ से गुज़री कोई उखड़ा कोई टूटा ख़िज़ाँ के आख़िरी दिन थे
जब चली ठंडी हवा बच्चा ठिठुर कर रह गयामाँ ने अपने ला'ल की तख़्ती जला दी रात को
अब तू दरवाज़े से अपने नाम की तख़्ती उतारलफ़्ज़ नंगे हो गए शोहरत भी गाली हो गई
एक तख़्ती अम्न के पैग़ाम कीटाँग दीजे ऊँचे मीनारों के बीच
धूप की टूटी हुई तख़्ती पे बारिश ने लिखाघर के अंदर बैठ कर मौसम का अंदाज़ा न कर
लम्हा-ब-लम्हा पाँव से लिपटी हैं हिजरतेंकैसे लगाते नाम की तख़्ती मकान पर
हमारे नाम की तख़्ती भी उन पे लग न सकीलहू में गूँध के मिट्टी जो घर बनाए गए
लिखें हम ऐश की तख़्ती को किस तरह ऐ जाँक़लम ज़मीन के ऊपर दवात कोठे पर
मैं हूँ दिल है तन्हाई हैतुम भी होते अच्छा होता
दिल से जो बात निकलती है असर रखती हैपर नहीं ताक़त-ए-परवाज़ मगर रखती है
मुझे तन्हाई की आदत है मेरी बात छोड़ेंये लीजे आप का घर आ गया है हात छोड़ें
तन्हाई में करनी तो है इक बात किसी सेलेकिन वो किसी वक़्त अकेला नहीं होता
तुम से पहले वो जो इक शख़्स यहाँ तख़्त-नशीं थाउस को भी अपने ख़ुदा होने पे इतना ही यक़ीं था
दिल्ली में आज भीक भी मिलती नहीं उन्हेंथा कल तलक दिमाग़ जिन्हें ताज-ओ-तख़्त का
काँप उठती हूँ मैं ये सोच के तन्हाई मेंमेरे चेहरे पे तिरा नाम न पढ़ ले कोई
जितना देखो उसे थकती नहीं आँखें वर्नाख़त्म हो जाता है हर हुस्न कहानी की तरह
उदासी शाम तन्हाई कसक यादों की बेचैनीमुझे सब सौंप कर सूरज उतर जाता है पानी में
ज़रा देर बैठे थे तन्हाई मेंतिरी याद आँखें दुखाने लगी
ये किस मक़ाम पे लाई है मेरी तन्हाईकि मुझ से आज कोई बद-गुमाँ नहीं होता
दश्त-ए-तन्हाई में जीने का सलीक़ा सीखिएये शिकस्ता बाम-ओ-दर भी हम-सफ़र हो जाएँगे
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