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शेर
तिरी महफ़िल में फ़र्क़-ए-कुफ़्र-ओ-ईमाँ कौन देखेगा
फ़साना ही नहीं कोई तो उनवाँ कौन देखेगा
अज़ीज़ वारसी
शेर
मैं फ़क़त इंसान हूँ हिन्दू मुसलमाँ कुछ नहीं
मेरे दिल के दर्द में तफ़रीक़-ए-ईमाँ कुछ नहीं