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शेर
सैर-ए-बहार-ए-बाग़ से हम को मुआ'फ़ कीजिए
उस के ख़याल-ए-ज़ुल्फ़ से 'दर्द' किसे फ़राग़ है
ख़्वाजा मीर दर्द
शेर
गुलचीं बहार-ए-गुल में न कर मन-ए-सैर-ए-बाग़
क्या हम ग़ुबार दामन-ए-बाद-ए-सबा के हैं
अब्दुल्ल्ला ख़ाँ महर लखनवी
शेर
इतनी फ़ुर्सत दे कि रुख़्सत हो लें ऐ सय्याद हम
मुद्दतों इस बाग़ के साये में थे आज़ाद हम
मज़हर मिर्ज़ा जान-ए-जानाँ
शेर
है तमाशा-गाह-ए-सोज़-ए-ताज़ा हर यक उज़्व-ए-तन
जूँ चराग़ान-ए-दिवाली सफ़-ब-सफ़ जलता हूँ मैं
मिर्ज़ा ग़ालिब
शेर
बरहना देख कर आशिक़ में जान-ए-ताज़ा आती है
सरापा रूह का आलम है तेरे जिस्म-ए-उर्यां में