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शेर
मियान-ए-हश्र ये काफ़िर बड़े इतराए फिरते हैं
मज़ा आ जाए ऐसे में अगर सुन ले ख़ुदा मेरी
मुज़्तर ख़ैराबादी
शेर
ख़ुदा ने इल्म बख़्शा है अदब अहबाब करते हैं
यही दौलत है मेरी और यही जाह-ओ-हशम मेरा
चकबस्त बृज नारायण
शेर
ज़बान-ए-हाल से ये लखनऊ की ख़ाक कहती है
मिटाया गर्दिश-ए-अफ़्लाक ने जाह-ओ-हशम मेरा
चकबस्त बृज नारायण
शेर
तेज़ रखियो सर-ए-हर-ख़ार को ऐ दश्त-ए-जुनूँ
शायद आ जाए कोई आबला-पा मेरे बाद