aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "unsiyat"
दिलकशी थी उन्सियत थी या मोहब्बत या जुनूनसब मराहिल तुझ से जो मंसूब थे अच्छे लगे
अज़िय्यत मुसीबत मलामत बलाएँतिरे इश्क़ में हम ने क्या क्या न देखा
शराफ़तों की यहाँ कोई अहमियत ही नहींकिसी का कुछ न बिगाड़ो तो कौन डरता है
कट गई एहतियात-ए-इश्क़ में उम्रहम से इज़हार-ए-मुद्दआ न हुआ
एक ही शहर में रहना है मगर मिलना नहींदेखते हैं ये अज़िय्यत भी गवारा कर के
तुझ से अब और मोहब्बत नहीं की जा सकतीख़ुद को इतनी भी अज़िय्यत नहीं दी जा सकती
मैं वो महरूम-ए-इनायत हूँ कि जिस ने तुझ सेमिलना चाहा तो बिछड़ने की वबा फूट पड़ी
उस मेहरबाँ नज़र की इनायत का शुक्रियातोहफ़ा दिया है ईद पे हम को जुदाई का
अब्र बरसे तो इनायत उस कीशाख़ तो सिर्फ़ दुआ करती है
जो तू नहीं है तो ये मुकम्मल न हो सकेंगीतिरी यही अहमियत है मेरी कहानियों में
जिस की अदा अदा पे हो इंसानियत को नाज़मिल जाए काश ऐसा बशर ढूँडते हैं हम
तमाम उम्र इसी एहतियात में गुज़रीकि आशियाँ किसी शाख़-ए-चमन पे बार न हो
मुझे सँभालने में इतनी एहतियात न करबिखर न जाऊँ कहीं मैं तिरी हिफ़ाज़त में
तमाम शहर गिरफ़्तार है अज़िय्यत मेंकिसे कहूँ मिरे अहबाब की ख़बर रक्खे
अहमियत का मुझे अपनी भी तो अंदाज़ा हैतुम गए वक़्त की मानिंद गँवा दो मुझ को
आज क्या लौटते लम्हात मयस्सर आएयाद तुम अपनी इनायात से बढ़ कर आए
कुछ मोहब्बत को न था चैन से रखना मंज़ूरऔर कुछ उन की इनायात ने जीने न दिया
परतव-ए-ख़ुर से है शबनम को फ़ना की तालीममैं भी हूँ एक इनायत की नज़र होते तक
तिरा निज़ाम है सिल दे ज़बान-ए-शायर कोये एहतियात ज़रूरी है इस बहर के लिए
मिलती है ज़िंदगी में मोहब्बत कभी कभीहोती है दिलबरों की इनायत कभी कभी
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