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शेर
ख़बर मुझ को नहीं मैं जिस्म हूँ या कोई साया हूँ
ज़रा इस की वज़ाहत धूप की चादर पे लिख देना
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
शेर
मज़ा आता अगर गुज़री हुई बातों का अफ़्साना
कहीं से तुम बयाँ करते कहीं से हम बयाँ करते
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
शेर
कठिन है काम तो हिम्मत से काम ले ऐ दिल
बिगाड़ काम न मुश्किल समझ के मुश्किल को