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शेर
सरवत हुसैन
शेर
मुझे है फ़िक्र ख़त भेजा है जब से उस गुल-ए-तर को
हज़ारों बुलबुलें रोकेंगी रस्सी में कबूतर को
तअशशुक़ लखनवी
शेर
रोया तमाम उम्र वो शबनम के साथ साथ
फिर क्यों कहूँ कि दर्द-ए-गुल-ए-तर में कुछ न था
क़मर रईस बहराइची
शेर
शम्अ जो आगे शाम को आई रश्क से जल कर ख़ाक हुई
सुब्ह गुल-ए-तर सामने हो कर जोश-ए-शर्म से आब हुआ
मीर तक़ी मीर
शेर
क़यामत में बड़ी गर्मी पड़ेगी हज़रत-ए-ज़ाहिद
यहीं से बादा-ए-गुल-रंग में दामन को तर कर लो