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शेर
कहूँ किस से मैं कि क्या है शब-ए-ग़म बुरी बला है
मुझे क्या बुरा था मरना अगर एक बार होता
मिर्ज़ा ग़ालिब
शेर
शह-ज़ोर अपने ज़ोर में गिरता है मिस्ल-ए-बर्क़
वो तिफ़्ल क्या गिरेगा जो घुटनों के बल चले
मिर्ज़ा अज़ीम बेग 'अज़ीम'
शेर
रूठने और मनाने के एहसास में है इक कैफ़-ओ-सुरूर
मैं ने हमेशा उसे मनाया वो भी मुझे मनाए तो
बर्क़ी आज़मी
शेर
माज़ी-ए-मरहूम की नाकामियों का ज़िक्र छोड़
ज़िंदगी की फ़ुर्सत-ए-बाक़ी से कोई काम ले
सीमाब अकबराबादी
शेर
कमर बाँधे हुए चलने को याँ सब यार बैठे हैं
बहुत आगे गए बाक़ी जो हैं तय्यार बैठे हैं