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शेर
दाम-ए-हर-मौज में है हल्क़ा-ए-सद-काम-ए-नहंग
देखें क्या गुज़रे है क़तरे पे गुहर होते तक
मिर्ज़ा ग़ालिब
शेर
ऐ 'मुस्हफ़ी' सद-शुक्र हुआ वस्ल मयस्सर
इफ़्तार किया रोज़े में उस लब के रोतब से
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
जो मैं सर-ब-सज्दा हुआ कभी तो ज़मीं से आने लगी सदा
तिरा दिल तो है सनम-आश्ना तुझे क्या मिलेगा नमाज़ में