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शेर
तुम क्या जानो अपने आप से कितना मैं शर्मिंदा हूँ
छूट गया है साथ तुम्हारा और अभी तक ज़िंदा हूँ
साग़र आज़मी
शेर
अंगड़ाई पर अंगड़ाई लेती है रात जुदाई की
तुम क्या समझो तुम क्या जानो बात मिरी तन्हाई की
क़तील शिफ़ाई
शेर
क्यूँ शेर-ओ-शायरी को बुरा जानूँ 'मुसहफ़ी'
जिस शायरी ने आरिफ़-ए-कामिल किया मुझे
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
आले रज़ा रज़ा
शेर
मैं न जानूँ काबा-ओ-बुत-ख़ाना-ओ-मय-ख़ाना कूँ
देखता हूँ हर कहाँ दस्ता है तुज मुख का सफ़ा
क़ुली क़ुतुब शाह
शेर
ख़ुदा भी जब न हो मालूम तब जानो मिटी हस्ती
फ़ना का क्या मज़ा जब तक ख़ुदा मालूम होता है