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शेर
तिरे माथे पे ये आँचल बहुत ही ख़ूब है लेकिन
तू इस आँचल से इक परचम बना लेती तो अच्छा था
असरार-उल-हक़ मजाज़
शेर
छुपी है अन-गिनत चिंगारियाँ लफ़्ज़ों के दामन में
ज़रा पढ़ना ग़ज़ल की ये किताब आहिस्ता आहिस्ता
प्रेम भण्डारी
शेर
पहली साँस पे मैं रोया था आख़िरी साँस पे दुनिया
इन साँसों के बीच में हम ने क्या खोया क्या पाया
प्रेम भण्डारी
शेर
तेरे मेरे बीच नहीं है ख़ून का रिश्ता फिर भी क्यूँ
तेरी आँख के सारे आँसू मेरी आँख से बहते हैं
प्रेम भण्डारी
शेर
या तो दीवाना हँसे या तुम जिसे तौफ़ीक़ दो
वर्ना इस दुनिया में रह कर मुस्कुराता कौन है