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शेर
शिद्दत-ए-तिश्नगी में भी ग़ैरत-ए-मय-कशी रही
उस ने जो फेर ली नज़र मैं ने भी जाम रख दिया
अहमद फ़राज़
शेर
यार रोते रहे सब रूह ने परवाज़ किया
क्या मुसाफ़िर के तईं शिद्दत-ए-बाराँ रोके
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
वक़्त-ए-नज़्ज़ारा न रो कहते थे ऐ चश्म तुझे
शिद्दत-ए-गिर्या से ले ख़ाक न सूझा, देखा