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ग़ज़ल
ज़रा सा झाँक लो इन बे-क़रार आँखों में
दिखाई देगा तुम्हारा दयार आँखों में
सय्यद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी
ग़ज़ल
तिश्ना-ए-ख़ूँ है अपना कितना 'मीर' भी नादाँ तल्ख़ी-कश
दम-दार आब-ए-तेग़ को उस के आब-ए-गवारा जाने है