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ग़ज़ल
किसी दर्द-मंद की हूँ सदा किसी दिल-जले की पुकार हूँ
जो बिगड़ गया वो नसीब हूँ जो उजड़ गई वो बहार हूँ
मेला राम वफ़ा
ग़ज़ल
मिरा दिल जले तो जला करे वही कर जो तेरा ख़याल है
मिरे दिल की बात नहीं नहीं तिरे घर का ये तो सवाल है
अब्दुल करीम मजरूह सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
साइल देहलवी
ग़ज़ल
नब्ज़ पर मुझ दिल-जले के उँगलियाँ रक्खें अगर
ऐ मसीहा आग लग जाएगी सारे हाथ में