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ग़ज़ल
गुनाहगार की सुन लो तो साफ़ साफ़ ये है
कि लुत्फ़-ए-रहम-ओ-करम क्या फिर इंतिक़ाम के बाद
आसी ग़ाज़ीपुरी
ग़ज़ल
गो 'लुत्फ'-ए-ख़ुफ़्ता-बख़्त के आओ न ख़्वाब में
लेकिन तिरे ख़याल को नित दिल में राह है
मिर्ज़ा अली लुत्फ़
ग़ज़ल
'लुत्फ' ये शेर कहा जिस ने अजब शाएर था
जिस के सुनने से हुए टुकड़े हज़ारों दिल के
मिर्ज़ा अली लुत्फ़
ग़ज़ल
इतना जूया-ए-मुलाक़ात न होता था 'लुत्फ'
शक्ल निभने की जो कुछ थी सो मुसावात में थी
मिर्ज़ा अली लुत्फ़
ग़ज़ल
'लुत्फ' की आज़ाद-वज़ई से मज़ा क्या ख़ाक उठाएँ
याँ ज़क़ूम-ए-दोज़ख़ ओ सर्व-ए-चमन दोनों हैं एक
मिर्ज़ा अली लुत्फ़
ग़ज़ल
क्या दिन थे वो भी 'लुत्फ' कि रहते थे मिस्ल-ए-ज़ुल्फ़
कानों से उस के हम से परेशाँ लगे हुए
मिर्ज़ा अली लुत्फ़
ग़ज़ल
जब से खींचा 'लुत्फ' रंज-ए-फ़ुर्क़त-ए-यार-ओ-दयार
अब हुई मा'लूम मेहनत गर्दिश-ए-अय्याम की
मिर्ज़ा अली लुत्फ़
ग़ज़ल
'लुत्फ' हम उस बुत-ए-सफ़्फ़ाक के कूचे से आज
बच कर इस तरह से आए हैं कि जी जानता है
मोहम्मद लुतफ़ुद्दीन ख़ान लुत्फ़
ग़ज़ल
'लुत्फ' किस तरह करे फ़िक्र-ए-विसाल-ए-जानाँ
एक दम की नहीं फ़ुर्सत उसे ग़म खाने की
मोहम्मद लुतफ़ुद्दीन ख़ान लुत्फ़
ग़ज़ल
ग़ैर को देखेंगे आता दर-ए-जानाँ पे जो 'लुत्फ'
उस गली से भी तो चल देंगे जो वहशत आई
मोहम्मद लुतफ़ुद्दीन ख़ान लुत्फ़
ग़ज़ल
ख़ूब है ख़ूब उड़ा ऐ शब-ए-फ़ुर्क़त के मज़े
लुत्फ़ हर-हाल में देते हैं मोहब्बत के मज़े
मोहम्मद लुतफ़ुद्दीन ख़ान लुत्फ़
ग़ज़ल
'लुत्फ' से किस लुत्फ़ से कहते हैं सारे अक़रबा
कुश्ता-ए-नाज़-ए-बुताँ मर्द-ए-ख़ुदा क्यूँकर हुआ
मोहम्मद लुतफ़ुद्दीन ख़ान लुत्फ़
ग़ज़ल
दिल-ए-मुज़्तर को तुम इफ़्शा की मलामत न करो
दिल रहा हो तो सही होश-रुबा हो कि न हो
मोहम्मद लुतफ़ुद्दीन ख़ान लुत्फ़
ग़ज़ल
ये माना पर्दा-दारी भी बहुत पुर-लुत्फ़ होती है
बुरा क्या है मोहब्बत का अगर इज़हार हो जाए
कँवल एम ए
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
सोच रहा था ग़म-नसीब बिगड़ी बने तो किस तरह
रहमत-ओ-लुत्फ़-ए-किर्दगार बन गए आसरा कि यूँ
एस ए मेहदी
ग़ज़ल
तन्हा जिए तो ख़ाक जिए लुत्फ़ क्या लिया
ऐ ख़िज़्र ये तो ज़िंदगी में ज़िंदगी नहीं