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ग़ज़ल
रिज़्क़-ए-बर-हक़ मेरे हिस्से में नहीं आया अभी
तेरे होने पर मुझे फिर से यक़ीं आया अभी
शहराम सर्मदी
ग़ज़ल
ख़ुदा माबूद है मुतलक़ बंदा मौजूद है मुतलक़
यू दोनों मुतलक़-ए-बर-हक़ समझ हर यक का मुश्किल है
क़ुर्बी वेलोरी
ग़ज़ल
किसी का वादा-ए-दीदार तो ऐ 'दाग़' बर-हक़ है
मगर ये देखिए दिल-शाद उस दिन हम भी होते हैं
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
बर-हक़ नहीं हूँ पैकर-ए-बातिल नहीं हूँ मैं
जो कुछ हूँ ना-तमाम हूँ कामिल नहीं हूँ मैं
ज़ोया राव वफ़ा
ग़ज़ल
शौक़ बहराइची
ग़ज़ल
ये बात अलग साक़ी नवाज़े न नवाज़े
हम मय-कदा-ए-इश्क़ के मय-ख़्वार रहे हैं
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
ख़िज़ाँ तुझ पर ये कैसा बर्ग-ओ-बार आने लगा है
मुझे अब मौसमों पर ए'तिबार आने लगा है
मोहम्मद इज़हारुल हक़
ग़ज़ल
दिल-ए-पज़-मुर्दा को हम-रंग-ए-अब्र-ओ-बाद कर देगा
वो जब भी आएगा इस शहर को बर्बाद कर देगा
जमाल एहसानी
ग़ज़ल
ये किस ने डाल दी बहर-ए-तलातुम-ख़ेज़ में कश्ती
ये शोर-ए-हर्चे-बादा-बाद क्यूँ साहिल से उठता है