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ग़ज़ल
झुकी नज़रों से तकना और ख़मोशी से गुज़र जाना
मोहब्बत की रिवायत है ग़लत-फ़हमी में मत रहना
आदिल राही
ग़ज़ल
वो मेरी राह से अब मुस्कुरा कर क्यों नहीं जाता
मैं उस की राह तकना छोड़ के घर क्यों नहीं जाता
शाद सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
तुझे तकना तुझे सुनना तिरा हँसना मचल जाना
हमारे ग़म के आँगन में फ़क़त दो-चार ख़ुशियाँ हैं