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ग़ज़ल
सागर पार की ख़बरें देखे हम-साए का पता नहीं
आज का इंसाँ आलम फ़ाज़िल उस को अब समझाए कौन
किश्वर नाहीद
ग़ज़ल
गुज़रती है जो दिल पर वो कहानी याद रखता हूँ
मैं हर गुल-रंग चेहरे को ज़बानी याद रखता हूँ
फ़ाज़िल जमीली
ग़ज़ल
माना शराब पीते हैं तो क्या हुआ मियाँ
या'नी कि आप कहते हैं फ़ाज़िल न होंगे हम
मुंतज़िर फ़िरोज़ाबादी
ग़ज़ल
मकतब की आशिक़ी भी तारीख़-ए-ज़िंदगी थी
फ़ाज़िल था घर से मजनूँ लैला पढ़ी लिखी थी
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
ख़ुदा की बात करता है बिना ज़िक्र-ए-मोहब्बत के
तू वाइज़ हो गया है पर अभी फ़ाज़िल नहीं लगता