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ग़ज़ल
निहाँ है गौहर-ए-मक़्सूद जेब-ए-ख़ुद-शनासी में
कि याँ ग़व्वास है तिमसाल और आईना दरिया है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
लोग ग़व्वास बने फिरते हैं दरिया दरिया
मेरा क़तरे में उतर जाने को जी चाहता है
मुशताक़ अहमद मुशताक़
ग़ज़ल
डूबूँगा गर है मेरे मुक़द्दर में डूबना
ग़व्वास-ए-बहर-ए-इश्क़ को साहिल से क्या ग़रज़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
तौबा करने को तो कर ली हज़रत-ए-'ग़व्वास' ने
यक-ब-यक गर्दूं पे वो काली घटा छाई कि बस
ग़व्वास क़ुरैशी
ग़ज़ल
न छेड़ो मुझ को मैं ग़व्वास हूँ दरिया-ए-मअनी का
न ढूँडो मुझ को मुसतग़रक़ हूँ मैं बिल्कुल समुंदर में
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
ग़व्वास-ए-बहर-ए-इल्म हैं गिर्दाब-ए-हिर्स में
बाज़ार में हैं लाल-ओ-गुहर कम बहुत ही कम
मोहम्मद शरफ़ुद्दीन साहिल
ग़ज़ल
सुने पर होवें उश्शाक़ाँ ये मअनी रम्ज़ सूँ सरमस्त
ले जावें फ़ैज़ ग़व्वास-ए-हक़ीक़त हक़-रसाँ मेरा