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ग़ज़ल
हमें तो सिर्फ़ यही इक ख़ुशी है थोड़ी बहुत
हमारी उस से जो वाबस्तगी है थोड़ी बहुत
मीनाक्षी जिजीविषा
ग़ज़ल
ख़्वाब के पास हैं ता'बीर से वाबस्ता हैं
फिर भी ये फ़ैसले तक़दीर से वाबस्ता हैं
मीनाक्षी जिजीविषा
ग़ज़ल
ग़मों की रात है बस्ती में सब शजर चुप हैं
परिंदे सोग में बैठे तो हैं मगर चुप हैं