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ग़ज़ल
जमील मज़हरी
ग़ज़ल
दिलों के नाख़ुदा उठ कर सँभालें कश्तियाँ अपनी
बहुत से ऐसे तूफ़ाँ 'मज़हरी' के दिल में पलते हैं
जमील मज़हरी
ग़ज़ल
यहाँ जो भी था तन्हा था यहाँ जो भी है तन्हा है
ये दुनिया है ये दुनिया है इसी का नाम दुनिया है
जमील मज़हरी
ग़ज़ल
कौन सी दुनिया में हूँ किस की निगहबानी में हूँ
ज़िंदगी है सख़्त मुश्किल फिर भी आसानी में हूँ