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ग़ज़ल
इब्न-ए-मरियम की शफ़ाअत शोख़ी-ए-ईजाद तक
ख़ानुमाँ तामीर-ए-नौ शुद ख़ानुमाँ बर्बाद तक
अबान आसिफ़ कचकर
ग़ज़ल
रहूँ काहे को दिल-ख़सता फिरूँ काहे को आवारा
अगर आँ तुर्क-ए-शीराज़ी ब-दस्त आरद दिल-ए-मा रा
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
'शाहिद' अब ये आलम है इस अहद-ए-सुख़न-अर्ज़ानी का
'मीर' पे कर ईराद भी उस पे 'ग़ालिब' की तफ़्सीर निकाल
शाहिद कमाल
ग़ज़ल
आगे उस मुतकब्बिर के हम ख़ुदा ख़ुदा किया करते हैं
कब मौजूद ख़ुदा को वो मग़रूर-ए-ख़ुद-आरा जाने है