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ग़ज़ल
मोतकिफ़ गरचे ब-ज़ाहिर हूँ तसव्वुर में मगर
कू-ब-कू साथ ये बे-पीर लिए फिरते हैं
इमाम बख़्श नासिख़
ग़ज़ल
देख दिल को मिरे ओ काफ़िर-ए-बे-पीर न तोड़
घर है अल्लाह का ये इस की तो ता'मीर न तोड़
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
ख़्वाब देखने वाली आँखें पत्थर होंगी तब सोचेंगे
सुंदर कोमल ध्यान तितलियाँ बे-पर होंगी तब सोचेंगे
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ग़ज़ल
दिल का है क़स्द तिरी बज़्म में अड़ कर जाऊँ
क्या ही बे-पर की उड़ाता है ये परवाना-ए-इश्क़
आग़ा हज्जू शरफ़
ग़ज़ल
बा'द सय्यद के मैं कॉलेज का करूँ क्या दर्शन
अब मोहब्बत न रही इस बुत-ए-बे-पीर के साथ
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
बेकल उत्साही
ग़ज़ल
दिल-ए-सीपारा को ले टाँक तावीज़ों में हैकल के
न सरका ये हमाइल ऐ बुत-ए-बे-पीर पहलू से