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ग़ज़ल
लुत्फ़-ए-कलाम क्या जो न हो दिल में दर्द-ए-इश्क़
बिस्मिल नहीं है तू तो तड़पना भी छोड़ दे
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
बिछड़ना भी तुम्हारा जीते-जी की मौत है गोया
उसे क्या ख़ाक लुत्फ़-ए-ज़िंदगी जिस से जुदा तुम हो
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
ता-कुजा ये पर्दा-दारी-हा-ए-इश्क़-ओ-लाफ़-ए-हुस्न
हाँ सँभल जाएँ दो-आलम होश में आता हूँ मैं
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
लज़्ज़त हनूज़ माइदा-ए-इश्क़ में नहीं
आता है लुत्फ़-ए-जुर्म-ए-तमन्ना सज़ा के ब'अद
मौलाना मोहम्मद अली जौहर
ग़ज़ल
शाह-राह-ए-ज़ीस्त पर मुझ को अकेला छोड़ कर
जाने वाला मुझ से लुत्फ़-ए-ज़िंदगानी ले गया
जहाँगीर नायाब
ग़ज़ल
सब ग़लत कहते थे लुत्फ़-ए-यार को वजह-ए-सुकूँ
दर्द-ए-दिल उस ने तो 'हसरत' और दूना कर दिया