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ग़ज़ल
ब-क़द्र-ए-हसरत-ए-दिल चाहिए ज़ौक़-ए-मआसी भी
भरूँ यक-गोशा-ए-दामन गर आब-ए-हफ़्त-दरिया हो
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
कल मैं ने कहा उस से क्या दिल में ये आया जो
कंघी है न चोटी है मिस्सी है न काजल है
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
लब-ए-नाज़ुक के बोसे लूँ तो मिस्सी मुँह बनाती है
कफ़-ए-पा को अगर चूमूँ तो मेहंदी रंग लाती है
आसी ग़ाज़ीपुरी
ग़ज़ल
दिखाया हुस्न से एजाज़-ए-मूसी किल्क-ए-क़ुदरत ने
यद-ए-बैज़ा बनाया चूर अंगुश्त-ए-हिनाई का
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
जिस को समझे लब-ए-पाँ-ख़ुर्दा वो मालिदा-मिसी
मर्दुमाँ देखियो फूली वो कहीं शाम न हो
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
मेहंदी भी है मिस्सी भी है लाखा भी है लब पर
कुछ रंग हैं बे-रंग तुम्हारे कई दिन से
मिर्ज़ा शौक़ लखनवी
ग़ज़ल
क्या क्या सिफ़त ज़बान से सौसन की भी सुनी
मल कर मिसी चमन में जो उस ने दिखाए होंठ