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ग़ज़ल
क्या हुआ वाइज़ करे है शोर जूँ तब्ल-ए-तही
वो सर-ए-बे-मग़ज़ गोया कांसा-ए-तम्बूर है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
ग़ज़ल
न होंगे सोज़-ए-मोहब्बत के दिल-जले ठंडे
भरी है आतिश-ए-ग़म मग़्ज़-ए-उस्तुख़्वाँ की तरह
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
निकाला तेरे इक पुश्ते ने कफ़शीं मार-ए-मग़्ज़ उस का
सिवा तेरे ख़ुदा कोई कहा सकता है क्या क़ुदरत
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
ठोकरें खाएगा इक दिन सर-कशी इतनी न कर
ओ सर-ए-बे-मग़ज़ क्यूँ भूला है इस दस्तार पर
गोया फ़क़ीर मोहम्मद
ग़ज़ल
छिलकों के हैं अम्बार मगर मग़्ज़ नदारद
दुनिया में मुसलमाँ तो हैं इस्लाम नहीं है
अब्दुल अज़ीज़ ख़ालिद
ग़ज़ल
हिकमत से है ये ख़ाक का पुतला बना हुआ
नूर आँख में है उस के तो मग़्ज़ उस्तुख़्वाँ में है
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
उस गुल के दाग़-ए-इश्क़ ने ऐसा किया गुदाज़
घुल घुल के मग़्ज़ शम्अ के सर से निकल गया
वज़ीर अली सबा लखनवी
ग़ज़ल
सा रेगा मापा धानी सा सानी धा पा माग रे
साज़ गर रूठे जो मुतरिब सरगमें गाना पड़ा
निधि गुप्ता कशिश
ग़ज़ल
हुज़ूर-ए-दोस्त मिरे गू-मगू के आलम ने
कहा भी उन से जो कहना था बात की भी नहीं
फ़ज़्ल अहमद करीम फ़ज़ली
ग़ज़ल
कमान अबरू की ऐसे नर्म है आएगा जो नावक
रहेगा उस्तुख़्वाँ में अपने मग़्ज़-ए-उस्तुख़्वाँ हो कर