aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम ",Mudl"
महबूब का घर हो कि बुज़ुर्गों की ज़मीनेंजो छोड़ दिया फिर उसे मुड़ कर नहीं देखा
मैं भी मुँह में ज़बान रखता हूँकाश पूछो कि मुद्दआ' क्या है
पीछे मुड़ कर क्यूँ देखा थापत्थर बन कर क्या तकते हो
आह तूल-ए-अमल है रोज़-फ़ुज़ूँगरचे इक मुद्दआ नहीं होता
दिलकश ऐसा कहाँ है दुश्मन-ए-जाँमुद्दई है प मुद्दआ है इश्क़
किस से इज़हार-ए-मुद्दआ कीजेआप मिलते नहीं हैं क्या कीजे
नहीं है ग़ैर-अज़ नुमूद कुछ भी जो मुद्दआ तेरी ज़िंदगी कातू इक नफ़स में जहाँ से मिटना तुझे मिसाल-ए-शरार होगा
यहाँ वो कौन है जो इंतिख़ाब-ए-ग़म पे क़ादिर होजो मिल जाए वही ग़म दोस्तों का मुद्दआ' होगा
थूक दे ख़ून जान ले वो अगरआलम-ए-तर्क-ए-मुद्दआ मेरा
आगही दाम-ए-शुनीदन जिस क़दर चाहे बिछाएमुद्दआ अन्क़ा है अपने आलम-ए-तक़रीर का
हर क़दम पर उधर मुड़ के देखाउन की महफ़िल से हम उठ तो आए
फिर न रुकिए जो मुद्दआ कहिएएक के बा'द दूसरा कहिए
यूँ बिछड़ना भी बहुत आसाँ न था उस से मगरजाते जाते उस का वो मुड़ कर दोबारा देखना
किस तरह तर्क-ए-मुद्दआ कीजेजब कोई अपना मुद्दआ' ही नहीं
न रोक ले हमें रोता हुआ कोई चेहराचले तो मुड़ के गली की तरफ़ नहीं देखा
वो सेहर मुद्दआ-तलबी में न काम आएजिस सेहर से सफ़ीना रवाँ हो सराब में
कौन मक़्सद को इश्क़ बिन पहुँचाआरज़ू इश्क़ मुद्दआ है इश्क़
मुझे याद करने से ये मुद्दआ थानिकल जाए दम हिचकियाँ आते आते
दिल-ए-बे-मुद्दआ ख़ुदा ने दियाअब किसी शय की एहतियाज नहीं
दिल का था एक मुद्दआ' जिस ने तबाह कर दियादिल में थी एक ही तो बात वो जो फ़क़त सही गई
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