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ग़ज़ल
रख दिए जाएँगे नेज़े लफ़्ज़ और होंटों के बीच
ज़िल्ल-ए-सुब्हानी के अहकामात जारी हो गए
राहत इंदौरी
ग़ज़ल
उस की नाराज़ी का सूरज जब सवा नेज़े पे था
अपने हर्फ़-ए-इज्ज़ ही ने सर पे साया कर दिया
आदिल मंसूरी
ग़ज़ल
है सवा नेज़े पे उस के क़ामत-ए-नौ-ख़ेज़ से
आफ़्ताब-ए-सुब्ह-ए-महशर है गुल-ए-दस्तार-ए-दोस्त
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
दीप्ति मिश्रा
ग़ज़ल
भला मख़्लूक़ ख़ालिक़ की सिफ़त समझे कहाँ क़ुदरत
उसी से नेति नेति ऐ यार दीदों ने पुकारा है
भारतेंदु हरिश्चंद्र
ग़ज़ल
जब भी आँखों में तिरी रुख़्सत का मंज़र आ गया
आफ़्ताब-ए-वक़्त नेज़े के बराबर आ गया