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ग़ज़ल
ये किस ने आ के क़ब्र को रौंदा है पावँ से
आती है बू-ए-गुल मिरी ख़ाक-ए-मज़ार में
गोया फ़क़ीर मोहम्मद
ग़ज़ल
ज़ेर-ए-पा दिल ही बिछे हों कि हैं ख़ूगर उस के
फ़र्श-ए-गुल पर भी नहीं पावँ वो धरने वाले