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ग़ज़ल
किसी बेकस को ऐ बेदाद गर मारा तो क्या मारा
जो आप्-ही मर रहा हो उस को गर मारा तो क्या मारा
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
मुझ को बोने थे दिल में और किसी के ग़म 'आٖफ़ी'
लेकिन दिल की सुर्ख़ी ज़मीं पर अब तक उस का क़ब्ज़ा है
आफ़्ताब शकील
ग़ज़ल
कभी तो बैठूँ हूँ जा और कभी उठ आता हूँ
मनूँ हूँ आप ही फिर आफी रूठ जाता हूँ