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ग़ज़ल
मिरे मास्टर न होते जो उलूम-ओ-फ़न में दाना
कभी मौला-बख़्श-साहब का न मैं शिकार होता
कैफ़ अहमद सिद्दीकी
ग़ज़ल
इस जानिब हम उस जानिब तुम बीच में हाइल एक अलाव
कब तक हम तुम अपने अपने ख़्वाबों को झुलसाएँगे
बशर नवाज़
ग़ज़ल
बुझ चुका जो क्यों वो सुलगाऊँ मोहब्बत का अलाव
अब तलक झेली जफ़ा की सख़्तियाँ ही ठीक हैं
ए.आर.साहिल "अलीग"
ग़ज़ल
तुझ को अब्र-आलूद दिनों से काम न चाँदनी रातों से
बहलाता है बातों से बहलाता जा बहलाता जा
हफ़ीज़ जालंधरी
ग़ज़ल
तिरी रहमतों के दयार में तिरे बादलों को पता नहीं
अभी आग सर्द हुई नहीं अभी इक अलाव जला नहीं
ऐतबार साजिद
ग़ज़ल
ज़र्रे अफ़्शाँ के नहीं किर्मक-ए-शब-ताब से कम
है वो ज़ुल्फ़-ए-अरक़-आलूद कि बरसात की रात
अमीर मीनाई
ग़ज़ल
दाग़-ए-रब्त-ए-हम हैं अहल-ए-बाग़ गर गुल हो शहीद
लाला चश्म-ए-हसरत-आलूद-ए-चराग़-ए-कुश्ता है