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ग़ज़ल
आपसी टकराव ने आख़िर नुमायाँ कर दिया
एक चिंगारी जो बरसों से दबी पत्थर में थी
अतीक़ मुज़फ़्फ़रपुरी
ग़ज़ल
आपसी रिश्तों की ख़ुशबू को कोई नाम न दो
इस तक़द्दुस को न काग़ज़ पर उतारा जाए