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ग़ज़ल
न कुछ ‘इल्म-ए-‘अरूज़ उस को न है अहल-ए-ज़बाँ ही वो
बना फिरता है नाहक़ ही 'सदा' नग़्मा-सरा देखो
सदा अम्बालवी
ग़ज़ल
अरूज़-ओ-मअ'नी-ओ-इल्म-ए-बयाँ उस्लूब सब बरसर
सुख़न पिन्हाँ कोई ज़ोर-ए-बयाँ के पार भी तो है
नज़ीर आज़ाद
ग़ज़ल
गुज़िश्तगाँ की वो सोहबत कहाँ 'उरूज' मगर
उन्हीं के ज़िक्र से दिल शादमाँ लिए फिरना