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ग़ज़ल
रश्हा-ए-शबनम बहार-ए-गुल फ़रोग़-ए-मेहर-ओ-माह
वाह क्या अशआर हैं दीवान-ए-फ़ितरत देखिए
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
वो दाना-ए-सुबुल ख़त्मुर-रुसुल मौला-ए-कुल जिस ने
ग़ुबार-ए-राह को बख़्शा फ़रोग़-ए-वादी-ए-सीना
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
झूट क्यूँ बोलें फ़रोग़-ए-मस्लहत के नाम पर
ज़िंदगी प्यारी सही लेकिन हमें मरना तो है
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
आँखें जिन को देख न पाएँ सपनों में बिखरा देना
जितने भी हैं रूप तुम्हारे जीते-जी दिखला देना
रईस फ़रोग़
ग़ज़ल
फ़रोग़-ए-सनअत-ए-क़द-आवरी का मौसम है
सुबुक हुए पे भी निकला है क़द्द-ओ-क़ामत क्या
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ग़ज़ल
मूसा की है क़सम तुझे और कोह-ए-तूर की
नूर-ओ-फ़रोग़-ए-जल्वा-ए-लमआ'न की क़सम
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
जवानो अब तुम्हारे हाथ में तक़्दीर-ए-आलम है
तुम्हीं होगे फ़रोग़-ए-बज़्म-ए-इम्काँ हम नहीं होंगे
अब्दुल मजीद सालिक
ग़ज़ल
ज़िंदगी तिश्ना भी है बे-रंग भी लेकिन 'सुरूर'
जब तलक चेहरा फ़रोग़-ए-मय से ताबिंदा न हो