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ग़ज़ल
ज़ियारत-गाह-ए-अहल-ए-अज़्म-ओ-हिम्मत है लहद मेरी
कि ख़ाक-ए-राह को मैं ने बताया राज़-ए-अलवंदी
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
यूँ अर्ज़-ओ-तलब से कम ऐ दिल पत्थर दिल पानी होते हैं
तुम लाख रज़ा की ख़ू डालो कब ख़ू-ए-सितमगर जाती है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
हम को है मालूम सब रूदाद-ए-इल्म-ओ-फ़ल्सफ़ा
हाँ हर ईमान-ओ-यक़ीं वहम-ओ-गुमाँ बनता गया
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
पेश-ए-नज़र है पस्त-ओ-बुलंद-ए-रह-ए-जुनूँ
हम बे-ख़ुदों से क़िस्सा-ए-अर्ज़-ओ-समा न पूछ
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
मक़ाम-ए-वस्ल तो अर्ज़-ओ-समा के बीच में है
मैं इस ज़मीन से निकलूँ तू आसमाँ से निकल
अभिषेक शुक्ला
ग़ज़ल
इक मोहब्बत के एवज़ अर्ज़-ओ-समा दे दूँगा
तुझ से काफ़िर को तो मैं अपना ख़ुदा दे दूँगा