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ग़ज़ल
एक ये दिन जब अपनों ने भी हम से नाता तोड़ लिया
एक वो दिन जब पेड़ की शाख़ें बोझ हमारा सहती थीं
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
बुरा समझूँ उन्हें मुझ से तो ऐसा हो नहीं सकता
कि मैं ख़ुद भी तो हूँ 'इक़बाल' अपने नुक्ता-चीनों में
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
इलाज-ए-ज़ोफ़-ए-यक़ीं इन से हो नहीं सकता
ग़रीब अगरचे हैं 'राज़ी' के नुक्ता-हाए-दक़ीक़
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
नज़र नहीं तो मिरे हल्क़ा-ए-सुख़न में न बैठ
कि नुक्ता-हा-ए-ख़ुदी हैं मिसाल-ए-तेग़-ए-असील
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
बड़ी बड़ी ख़ुशियों को हाँ नज़दीक से जा कर देखा तो
मैं ने राह के चलते-फिरते दुख से नाता जोड़ लिया
वसीम बरेलवी
ग़ज़ल
देख हमारे माथे पर ये दश्त-ए-तलब की धूल मियाँ
हम से अजब तिरा दर्द का नाता देख हमें मत भूल मियाँ
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
तू जहाँ से आज है नुक्ता-चीं कभी मुद्दतों में रहा वहीं
मैं गदा-ए-राहगुज़र नहीं मुझे दूर ही से सदा न दे